हम ऐसे अनोखे ग्रह पर रहते है जहाँ पर तरह-तरह के मौसम है, जहाँ प्रकृति के अद्भुत नज़ारें देखने को मिलते है और जहाँ अनोखी घटना घटित होते रहती है। हमारे पुरे शौर्य मंडल में सिर्फ इसी ग्रह पर जीवन है और जीवन पनपने के लिए अनुकूल वातावरण है, हमने अभी इसके रहस्यों को समझाना शुरू ही किया है। एक बड़ी अनोखी सी प्रक्रिया है, जो हमारे लिए बहुत मामूली बात लेकिन है बड़ी जटिल, और जिसके बिना पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व ही नहीं होता। प्रकृति की अनजान और ताक़तवर शक्तियाँ इसको यह रूप देती है, इसमें छुपे है कई रहस्य और जीवन भी और वह प्रक्रिया है बारिश। जब बारिश होती है तो चारों तरफ तापमान ठंडा हो जाता है, बारिश में भीगना सबको पसंद है और चाय पकोड़े खाना भी, पर कभी आपने सोचा है की आखिर यह बारिश होती कैसे है? और क्यों होती है?, कहाँ से आता यह इतना सारा पानी आसमान में? कैसे बारिश के साथ साथ ओले भी गिरते है? चलिए जानते है इन सारे सवालों के जवाब को आज के लेख बारिश के रहस्य में..!
कैसे होती है बारिश? | How Does It Rain?
बारिश के रहस्य की अगर हम बार करें तो आपको यह जानकार हैरानी होगी की बादलों में बारिश की शुरुवात तरल नहीं बल्कि स्नो (Snow) के रूप में होती है जो बर्फ, हवा और पानी की छोटी छोटी बूंदों का एक मिक्सचर होता है। पृथ्वी के ऊपरी हिस्सों में तापमान 0° से भी कम होता है और हम सब जानते है की पानी 0° पर बर्फ बन जाता है पर आसमान में ऐसा नहीं होता आसमान में तापमान इतना कम होने के बावजूद भी पानी बर्फ में नहीं बदलता। आप सोच रहे है की फ्रिज का टेम्परेचर कम करने से तो पानी बर्फ बन जाता है पर आसमान में तापमान 0° से भी कम है फिर भी पानी बर्फ में नहीं बदल रहा? आपके इस सवाल का जवाब है इम्पुरिटी (Impurity) यानी मिटटी के कण, पानी को बर्फ बनने के लिए मिटटी के कण की जरुरत होती है जिसके इर्द-गिर्द पानी बर्फ के क्रिस्टल बना सके और जिससे पानी तरल से एक ठोस आकार में बदल जाए।
स्नो क्रिस्टल्स और बारिश | Snow Crystals & Rain
पृथ्वी के वातावरण में ऐसे कई छोटे छोटे कण है जो आसमान में जाकर पानी को बर्फ के क्रिस्टल्स में बदलने में मदद करते है। जैसे की समंदर, फैक्टरियों से निकला धुंआ, आंधी में उड़ती रेगिस्तान की रेत, जंगल की आग से उड़ती राख, इन सबमें मिटटी के कण होते है जो आसमान में पानी को बर्फ के क्रिस्टल्स में बनाने का काम करते है। इन सब में सबसे दिलचस्प है वह कण जो बाहरी अंतरिक्ष से भी आते है, जिन्हे उल्कापिंड (Meteorites) कहते है। कभी किसी बड़े धूमकेतु (Comet) का हिस्सा रहा यह कण जब पृथ्वी के वातावरण से टकराता है तो इसकी रफ्तार धीमी हो जाती है और अंत में यह कण छोटी छोटी बूंदों के बादल में चला जाता है। जहाँ पानी इन कणो से मिलकर क्रिस्टलाइज होना शुरू कर देता है और यह प्रक्रिया निरंतर चलते रहती है। जब पानी की बूँद के कणो से मिलकर क्रिस्टल बनाती है तो यह क्रिस्टल खुद एक कण की तरह दूसरे बूंदों का आधार बन जाता है और बूँदें इनसे जुड़ कर जमने लगती है। छोटे छोटे क्रिस्टल्स से स्नो फलैक्स (Snow Flakes) बनते है और जब यह स्नो फलैक्स भारी हो जाते है नीचे गिरने लगते। नीचे गिरते वक़्त यह स्नो फलैक्स गर्म हवा से गुज़रते है जिसके कारण यह पिघल कर पानी यानी बारिश का रूप ले लेते है।
बारिश में हुई अजीब घटनाएँ | Strange Events In Rain
आपको शायद यही लगता होगा की बारिश में अक्सर पानी या ओले गिरते है पर आपको यह बात जान कर हैरानी होगी की हमारी धरती पर अजीबो गरीब किस्म की बारिशें भी होती है। बीसवीं सदी में लोगो ने यह दावा किया की कई बार बारिश में मेंढक, छिपकली और मछली गिरते देखा है। इस घटना में शामिल है 1906 की ऑस्ट्रेलिआ की घटना और 1952 की फ्लोरिडा की घटना जिसमे मछलियों की बारिश हुई थी। 1969 में बकिंगम में मेंढक बरसे थे और 2003 में कनेक्टिकट के बर्लिन शहर में छोटे छोटे मेंढक के अंडो की बरसने की खबर आयी थी। हम जानते है की आपके लिए यह बात मानना थोड़ा मुश्किल साबित होगा पर आप माने या न माने यह सारी घटनायें सच्ची है।
इस तरह की बारिश के पीछे प्रकृति का एक सिंपल सा प्रोसेस है जिसे वाटर स्पॉट (Water Spout) कहते है, जिसका मतलब है पानी के ऊपर घूमता टोर्नेडो (Tornado) यानी बवंडर। यह बवंडर 321 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से पानी के ऊपर घूमते है। इतनी तेज़ रफ़्तार में घूमते इस बवंडर में कई चीज़ें खींचती चली जाती है, जिसमे कई समुद्री जीव भी शामिल होते है। हैरान करने वाली बात यह है की बवंडर के थमने के बाद भी हवा की गति इतनी तेज़ होती है की समंदर के जीव 160 किलोमीटर तक आगे चले जाते है। जब हवायें शांत होती तो धरती की अनोखी बारिश होती समंदरी जीवों की बारिश।
क्या होती है आर्टिफीसियल रेन? | What Is Artificial Rain?
अभी तक आपने जाना कैसे प्रकृतिक रूप से बारिश हुआ करती है, और अब आप जानेंगे आर्टिफीसियल रेन के बारे में। आर्टिफीसियल रेन (Artificial Rain) या दूसरे शब्दों में कहे तो क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding), यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे वैज्ञानिक तरीके से मौसम में संशोधन किया जाता है जिसमे आर्टिफिशियल तरीके से बारिश करवाई जाती है। इस प्रोसेस में छोटे-छोटे विमानों, हेलीकाप्टर या एयरप्लेन को बादलों के बीच से गुजारा जाता है जो वहां सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide), पोटेशियम आयोडाइड (Potassium Iodide) और ड्राई आइस (Dry Ice) का छिड़काव करते है। बादलों में छिड़के गए यह सारे पदार्थ एक न्यूक्लाई या न्यूक्लियेटिंग एजेंट की तरह काम करते है जिससे बादलो में आइस क्रिस्टल बन जाते है। बादलों में मौजूद जल वाष्प (Water Vapour) इन आइस क्रिस्टल पर जमना शुरू कर देते है जिनसे यह क्रिस्टल भारी होने लग जाते है। बढ़ते वजन के कारण यह आइस क्रिस्टल नीचे गिरने लगते है और बारिश का रूप ले लेते है और इसी बारिश को आर्टिफीसियल रेन कहा जाता है