Chapter - 1- आखिरी मुलाक़ात
बरसों बाद आज जब मैं उस कब्रिस्तान की सड़क से गुज़ारा तो 16 साल पहले बीते दिनों की यादों ने मुझे चारों ओर से घेर लिया, उन यादों में थी उस कब्रिस्तान की डरावनी और खौफनाक कहानियाँ। मैंने बाइक रोकी और गुस्से भरी नज़र से उस कब्रिस्तान को देख रहा था जो आज भी रात की अँधेरी चादर ओढ़े कोहरे के पर्दे के पीछे छुपा था। एक ऐसा कब्रिस्तान जहाँ की हवाओं में आज भी रूहों की फुसफुसाहट है, जहाँ चाँद की रोशनी में परछाइयाँ नाचती नज़र आती है, जहाँ परिंदे भी रात गुज़ारने नहीं आते है। समय की मार ने कब्रों के पत्थरों की रंगत को फीका कर दिया था, कब्रों पर लिखे मृतकों के पुराने नाम और तारीखें समय के साथ धुंधली हो गई थीं। सूखे पत्ते से ढकी थी वहाँ की ज़मीन, जंगली घास फूस कई कब्रों पर उगी हुई दिखाई दे रही थी। ठण्ड के मारे जकड़े किसी मुर्दे की तरह ख़ामोशी से अपनी बाँहनुमा टहनियाँ फैलाये खड़े थे उस कब्रिस्तान के सारे पेड़। दिल में खौफ और आँखों को दहशत से भर देना वाली कई घटनाओ का केंद्र रहा है यह कब्रिस्तान। 550 साल पुराना यह कब्रिस्तान प्रेत, भटकती रूहें, जिन्नात, डायन, चुड़ैलों हर किसी का घर रह चूका है। यह वह कब्रिस्तान है जिसकी कहानियों ने अक्सर लोगो को अपनी ओर खींचा है।
मेरी नज़र की लय को वहाँ से गुज़रती एक ट्रक के हॉर्न ने थोड़ा दिया, मैंने बाइक स्टार्ट की और होटल की ओर चल दिया। आज मेरी इस कहानी की प्रेरणा भी इसी कब्रिस्तान में हुए एक दिल दहला देने वाली एक ऐसी ही घटना से है जो आज भी वहाँ रह रहे स्थानिए लोगो के बीच एक चर्चा का विषय है।
साल 2008, आज मेरी 12 वीं क्लास का फाइनल और आखिरी पेपर था, एग्जामिनेशन हॉल से बाहर आकर सब दोस्त आखिर बार एक दूसरे से मिल रहे थे और कसमे वादे कर रहे थे की टच में रहेंगे। मैं बड़े गौर से यह सब देख रहा था तभी पीछे से आवाज़ आयी "क्यों बे हीरो घर नहीं चलना है क्या?", यह आवाज़ थी वेदिका की और साथ में थे मेरे दोस्त क्षितिज और मृदुला, मैंने कहा चलो चलते है। हम सब ने अपनी अपनी साइकिल ली और घर ओर की चलने ही वाले थे की क्षितिज ने कहा "आज हम सब आखिर बार मिल रहे कल वेदिका दिल्ली चली जायेगी, मृदुला केरल और मैं कानपूर और तू गाँव चला जाएगा चलो आज Micheal Cemetery के रास्ते से घूमते हुए Dcosta Restaurant चलते है" मैंने कहा ''तू पागल है क्या आलरेडी 3 बज चुके है और Dcosta Restaurant यहाँ से 2 किलोमीटर दूर है और तो और जिस रस्ते से तू जाने की बात कर रहा है वहाँ तो दिन में भी कोई नहीं जाता और तू इस वक़्त चलने को कह रहा है जहाँ शाम होते ही आदमी क्या जानवर भी नहीं दिखते है" वेदिका ने मेरी बात को बीच में काटते हुए कहा "चल न यार आखिरी बार चलते है फिर घर चले जाना इतना मत डरा कर जल्दी आ जाएंगे" ना के अंदाज़ में मैंने हामी भरी और उनके साथ चलने लगा हम थोड़ी ही दूर पहुंचे ही थे की मेरे पिताजी ड्यूटी से वापस आते नज़र आये और उन्होंने पूछ लिया की "इस वक़्त इधर कहाँ जा रहे हो भूल गए क्या कल गाँव जाना है पैकिंग भी करनी है घर चलो" मैंने कहा "ठीक है" मैंने साइकिल घर के रास्ते की ओर मोड़ ली। पीछे मुड़कर मैंने अपने दोस्तों को देखा उनकी नज़रें मुझे ऐसे देख रही थी की जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया हो, वेदिका ने कहाँ "Go Home Kido" इतना सुनते ही मुझे थोड़ा ग़ुस्सा आ गया मैंने मृदुला की ओर देखा मुझे वह थोड़ी परेशान दिख रही थी पर इस बात को नज़रअंदाज़ कर के मैं घर की ओर चल दिया और वह आखिर दिन था जब मैंने आखिरी बार अपने दोस्तों को देखा था।
गाँव आने के बाद मैंने तीनो से कॉन्टैक्ट करने की बहुत कोशिश की पर मेरी कोशिशें सीमित ही रही क्यों की आज के हिसाब से 2008 में सोशल मीडिया और मोबाइल्स फ़ोन्स का इतना ज्यादा चलन नहीं हुआ करता था। कुछ दिनों तक ढूंढने के बाद मैंने उन तीनो को ढूंढ़ना छोड़ दिया। समय की रेत उड़ी और 16 साल बीत गए। गुज़रते वक़्त के साथ मेरी यादों में उन तीनो की तस्वीरें धुंधली हो कर मिट गयी और मैं उन्हें भूल गया। आज 2024 में, मैं एक सरकारी क्लर्क के रूप में कार्यरत हूँ, रोज़ 10 से 5 और दफ्तरी फाइलों के बीच में ज़िन्दगी गुज़र रही थी। रोज़ मर्रा की तरह आज भी फाइलों के बीच बैठ हुआ काम कर रहा था अचानक मेरी नज़र एक 2 साल पुराने पेपर के उस इस्तेहार पर पड़ी जो मृत लोगों की याद में होता है। उसमे छपी तस्वीर मुझे कुछ जानी पहचानी लगी पर दिमाग पर जोर डालने के बाद भी मुझे याद नहीं आ रहा था की यह कौन है पर मेरी आँखें तभी फटी की फटी रह गयीं जब मैंने उसका नाम पड़ा मृदुला शंकर और एक पल को मुझे यकीन नहीं हुआ की यह वही मृदुला जो मेरी उन तीन दोस्तों में एक थी पर वह अब मर चुकी है।
क्या मृदुला सच में मर चुकी है क्या है?
आखिर क्या हुआ था उस दिन उस माईकल कब्रिस्तान में?
जानने के लिए पढ़िए माईकल कब्रिस्तान का अगला भाग
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